शायद आजकल की ये प्रथा बन गयी है या आदत ,,,,,,,या कमजोरी ,,,,लोग अपनी अपेक्षाओ के अनुरूप सिको परिभाषित करते है क्योकि आज जो चल रहा है ,,,,,,,,और जो कल हमारा आने वाला है वो सिर्फ स्वार्थ और धोखे से सना हुआ है बस,,,इससे ज्यादा कुछ नही क्योकि हम अपनी कुत्षित और लोभी मानसिकता के जैसे गुलाम हो गये इसलिए हम गलत और सही में भेद ही नही कर पा रहे है बस जो भी कर रहे है उसे हठपूर्वक सही साबित करने की कोशिश में लगे रहते है लेकिन ऐसा कब तक ,,एक ना एक दिन तो इसका दुष्परिणाम हमे भुगतना ही पड़ेगा तो क्यों ना हम अपनी आदतों में सुधार करे और मनुष्यता को धारण कर अपने साथ साथ अपने समाज और देश का भी हित करे
इसलिए प्रतिस्पर्धा करे लेकिन नए युग के निर्माण के लिए नाकि विनाश के लिए और इस धारणा को अपने मन से निकाल कर एक अच्छी सोच के साथ किसी को ख़ुशी देकर भी अपने दिल को सुकून पंहुचा सकते है ,,,,,,,,तो करते है एक छोटी सी पहल ,,,,,,,,,,,,,,
जय हिन्द जय भारत ||||||||||||
इसलिए प्रतिस्पर्धा करे लेकिन नए युग के निर्माण के लिए नाकि विनाश के लिए और इस धारणा को अपने मन से निकाल कर एक अच्छी सोच के साथ किसी को ख़ुशी देकर भी अपने दिल को सुकून पंहुचा सकते है ,,,,,,,,तो करते है एक छोटी सी पहल ,,,,,,,,,,,,,,
जय हिन्द जय भारत ||||||||||||
