Friday, December 25, 2015
Sunday, December 20, 2015
Saturday, December 19, 2015
शब्दों का संसार
Friday, December 18, 2015
आज इस शहर में हु मैं मुसाफिर की तरहा
आज इस शहर में हु मैं मुसाफिर की तरहा
कल जिनके हर लम्हे में मैं था बसा
सच में वक़्त का ग़ुलाम हर सख्स है
जो पल में किसको क्या बना दे
किसकी पहचान बदल कर रख दे
किसको निस्तेनाबूत कर दे
इसलिए आज मैं अजनबी हु अपने ही शहर में
ये गलिया भी मेरी थी
ये पनघट भी मेरा
ये लोग भी मेरे अपने थे
जिनके साथ मैं सदिया गुजारने की बात करता था
आज वो नही संग मेरे
इसलिए अपनों में गुम मैं अपनों की तलाश करता हु
आज इस शहर में हु मैं मुसाफिर की तरहा,,,,,,,,,,,
कल जिनके हर लम्हे में मैं था बसा
सच में वक़्त का ग़ुलाम हर सख्स है
जो पल में किसको क्या बना दे
किसकी पहचान बदल कर रख दे
किसको निस्तेनाबूत कर दे
इसलिए आज मैं अजनबी हु अपने ही शहर में
ये गलिया भी मेरी थी
ये पनघट भी मेरा
ये लोग भी मेरे अपने थे
जिनके साथ मैं सदिया गुजारने की बात करता था
आज वो नही संग मेरे
इसलिए अपनों में गुम मैं अपनों की तलाश करता हु
आज इस शहर में हु मैं मुसाफिर की तरहा,,,,,,,,,,,
Thursday, December 17, 2015
एक प्रयास कुछ करने का
तो मित्रो करते है एक प्रयास कुछ करने का ||||||||||||||||||||||||||
हां वो अब नही है ???????????
हाँ तुम अब नही हो
ये सच है
किन्तु ये मन क्यों नही मानने को तैयार है
मैं इतना मजबूत समझता था अपने आपको
फिर भावनाओ में इतना क्यों बह रहा हु
क्यों खुद को नही रोक पा रहा हु
ऐसा क्या था तुममे
जो मेरा मन इतना व्याकुल है
हाँ ये सच है की
कुछ लम्हे बिताये थे तुम्हारे साथ
कुछ सपने भी संजोये थे
कई ख्वाबो में आके
मुझे जागते हुए सपने दिखाते थे
और कई अँधेरी रातो में
मुझे रात रात भर जगाते थे
हाँ मैं ये कहता हु अपने आप से
की मैं तुमसे नही जुदा था
फिर आज क्यों महसूस हो रहा है
की मैं अकेला हूँ तुम बिन
और कई सारे लोगो के बीच होकर भी
तन्हा और अकेला हूँ
दिल कहता है की
तुमसे मुझे स्नेह नही था
ना ही किसी प्रकार का लगाव
फिर भी तुम्हारे जाने से
जैसे जिन्दगी में एक ठहराव सा आ गया है
शायद मन कुछ और कहना चाहता है
पर दिल समझना ही नही चाहता
की तुम नही हो
नही हो
दूर कही आसमा की दुनिया के बाशिंदे हो गये हो
और लाखो तारो के बीच किसी तारे के रूप में टिमटिमा रहे हो
और यही सच है
बस यही सच है
और कुछ नही ?????????????????
निर्मल मन की तडपती व्यथा,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
ये सच है
किन्तु ये मन क्यों नही मानने को तैयार है
मैं इतना मजबूत समझता था अपने आपको
फिर भावनाओ में इतना क्यों बह रहा हु
क्यों खुद को नही रोक पा रहा हु
ऐसा क्या था तुममे
जो मेरा मन इतना व्याकुल है
हाँ ये सच है की
कुछ लम्हे बिताये थे तुम्हारे साथ
कुछ सपने भी संजोये थे
कई ख्वाबो में आके
मुझे जागते हुए सपने दिखाते थे
और कई अँधेरी रातो में
मुझे रात रात भर जगाते थे
हाँ मैं ये कहता हु अपने आप से
की मैं तुमसे नही जुदा था
फिर आज क्यों महसूस हो रहा है
की मैं अकेला हूँ तुम बिन
और कई सारे लोगो के बीच होकर भी
तन्हा और अकेला हूँ
दिल कहता है की
तुमसे मुझे स्नेह नही था
ना ही किसी प्रकार का लगाव
फिर भी तुम्हारे जाने से
जैसे जिन्दगी में एक ठहराव सा आ गया है
शायद मन कुछ और कहना चाहता है
पर दिल समझना ही नही चाहता
की तुम नही हो
नही हो
दूर कही आसमा की दुनिया के बाशिंदे हो गये हो
और लाखो तारो के बीच किसी तारे के रूप में टिमटिमा रहे हो
और यही सच है
बस यही सच है
और कुछ नही ?????????????????
निर्मल मन की तडपती व्यथा,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
Wednesday, December 16, 2015
निश्छल मन
उड़ जाऊ कही खुले आसमा में
मिल जाऊ उस नीले गगन से कही
जहाँ ना हो धुप ना हो छाया
बस मैं हूँ और मन को असीम आनंद की अनुभूति
कराने वाली प्रकृति का स्पर्श हो
जहा ना ही ईर्ष्या हो
ना भेदभाव हो
ना किसी प्रकार की जलन
बस प्रेम और जिसकी अनुभूति कर सके
सिर्फ और सिर्फ ऐसा निश्छल और निर्मल मन
हो इन्द्रधनुषी सतरंगी धुप
जिसमे खोकर अपने आप को भूल जाऊ
हो मेरी माँ का आँचल और
अतुलित और अविश्मर्निया यादो का हो संगम
ऐसा जीवन जो निःस्वार्थ हो
समर्पित हो अपने राष्ट्र को
भले बुरे का सदैव संज्ञान रहे
प्रखर हो ऐसी बुद्धि
माँ सरस्वती से हो जाए मिलन
जो करुना मई और
संगीत की देवी है
करदो माँ सार्थक मेरा जीवन
हो जाए मेरा भी निश्छल मन
हो जाए मेरा भी निश्छल मन
जय माँ भारती |||||||||||||||||||||
जय हिन्द|||||||||||||||||||||
जय भारत ||||||||||||||||||||||||
एहसासों का आसमा
कुछ पल जिन्दगी में चलते चलते ऐसे मिल जाते है जिनके बारे में सोचना तो दूर हम कल्पना भी नही करते और उनके मिलने मात्र से ऐसे सुखद एहसास का अनुभव होता है जिसके बारे में शायद ये शब्दों की सीमा भी कम पड़ जाए फिर भी ये जिन्दगी है और ये किस मोड़ पर हमे कौन से पलों का दीदार कराए ये सिर्फ हम या ऊपर वाले इश्वर ही जानते है जो हमारे जीवन के पल को लिखते है और हमसे उसी रूप में करवाते चले जाते है और ऐसा ही मेरा इस बार अपने ग्रामीण अंचल का सफ़र रहा जो मेरी जिन्दगी में ऐसी यादे दे गया जिनको भूल पाना शायद मेरी सामर्थ्य में नही है फिर भी इसमें दोनों तरह के एहसासों का मिश्रण है जिसमे सुखद अकम और दुखद एहसास ज्यादा है जिसमे कुछ अपनों से मिला और किसी ऐसे अपने को खोया जिसको भूल पाना शायद किसी के बस में नही ही जो भी उस सख्स को जानता है या मिला है ऐसे लोग बहुत कम लोगो की जिन्दगी में होते है जिनको हर कोई दिल से चाहने की कोशिश करता है उसी में ये मेरे लिए थे अब ये रिश्ता भी धूमिल गया धीरे धीरे और कुछ दिनों में जो हमारे बीच थे संग संग खेले थे हंसते थे आज वो नही है लेकिन दिल शायद आज भी ये मानने को तैयार नही है फिर भी बस यही कह सकते है की जो ईश्वर को मंजूर होता है वही होता है
हे ईश्वर ||||||||||||||||||||||||||||||||||
हे ईश्वर ||||||||||||||||||||||||||||||||||
Monday, December 14, 2015
नन्हे कदम
एक प्रयास हम करेंगे
उन नन्हे कदमो को संभालने का
ना गिरे ना झुके
हाँ उनके लडखडाने से पहले उन्हें
एक सार्थक पहल में शामिल करने का
कई बार उनके सामने
कई बार हमारे सामने
और यु कहे की सबके सामने
परोक्ष रूप से ऐसी परिस्थितिया आ जाती है
की हमारे कदम डगमगाने लगते है
और कभी कभी ऐसी दिशा की तरफ मुड जाते है
जो ना हमारे भविष्य के लिए ठीक होता है
न वृहद् और विशाल भारत के लिए
इसलिए एक संकल्प है
अपने इन छोटे छोटे नन्हे कदमो को
संभालने का
इनके भविष्य को सवारने का
तो आओ इस पहल में हम सब जुड़े
और एक नए
शांत
और अविशमर्नीय भारत का निर्माण करे
जय हिन्द||||||||||||||||||
जय भारत |||||||||||||||||||||||||
उन नन्हे कदमो को संभालने का
ना गिरे ना झुके
हाँ उनके लडखडाने से पहले उन्हें
एक सार्थक पहल में शामिल करने का
कई बार उनके सामने
कई बार हमारे सामने
और यु कहे की सबके सामने
परोक्ष रूप से ऐसी परिस्थितिया आ जाती है
की हमारे कदम डगमगाने लगते है
और कभी कभी ऐसी दिशा की तरफ मुड जाते है
जो ना हमारे भविष्य के लिए ठीक होता है
न वृहद् और विशाल भारत के लिए
इसलिए एक संकल्प है
अपने इन छोटे छोटे नन्हे कदमो को
संभालने का
इनके भविष्य को सवारने का
तो आओ इस पहल में हम सब जुड़े
और एक नए
शांत
और अविशमर्नीय भारत का निर्माण करे
जय हिन्द||||||||||||||||||
जय भारत |||||||||||||||||||||||||
