उड़ जाऊ कही खुले आसमा में
मिल जाऊ उस नीले गगन से कही
जहाँ ना हो धुप ना हो छाया
बस मैं हूँ और मन को असीम आनंद की अनुभूति
कराने वाली प्रकृति का स्पर्श हो
जहा ना ही ईर्ष्या हो
ना भेदभाव हो
ना किसी प्रकार की जलन
बस प्रेम और जिसकी अनुभूति कर सके
सिर्फ और सिर्फ ऐसा निश्छल और निर्मल मन
हो इन्द्रधनुषी सतरंगी धुप
जिसमे खोकर अपने आप को भूल जाऊ
हो मेरी माँ का आँचल और
अतुलित और अविश्मर्निया यादो का हो संगम
ऐसा जीवन जो निःस्वार्थ हो
समर्पित हो अपने राष्ट्र को
भले बुरे का सदैव संज्ञान रहे
प्रखर हो ऐसी बुद्धि
माँ सरस्वती से हो जाए मिलन
जो करुना मई और
संगीत की देवी है
करदो माँ सार्थक मेरा जीवन
हो जाए मेरा भी निश्छल मन
हो जाए मेरा भी निश्छल मन
जय माँ भारती |||||||||||||||||||||
जय हिन्द|||||||||||||||||||||
जय भारत ||||||||||||||||||||||||

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