ये सच है
किन्तु ये मन क्यों नही मानने को तैयार है
मैं इतना मजबूत समझता था अपने आपको
फिर भावनाओ में इतना क्यों बह रहा हु
क्यों खुद को नही रोक पा रहा हु
ऐसा क्या था तुममे
जो मेरा मन इतना व्याकुल है
हाँ ये सच है की
कुछ लम्हे बिताये थे तुम्हारे साथ
कुछ सपने भी संजोये थे
कई ख्वाबो में आके
मुझे जागते हुए सपने दिखाते थे
और कई अँधेरी रातो में
मुझे रात रात भर जगाते थे
हाँ मैं ये कहता हु अपने आप से
की मैं तुमसे नही जुदा था
फिर आज क्यों महसूस हो रहा है
की मैं अकेला हूँ तुम बिन
और कई सारे लोगो के बीच होकर भी
तन्हा और अकेला हूँ
दिल कहता है की
तुमसे मुझे स्नेह नही था
ना ही किसी प्रकार का लगाव
फिर भी तुम्हारे जाने से
जैसे जिन्दगी में एक ठहराव सा आ गया है
शायद मन कुछ और कहना चाहता है
पर दिल समझना ही नही चाहता
की तुम नही हो
नही हो
दूर कही आसमा की दुनिया के बाशिंदे हो गये हो
और लाखो तारो के बीच किसी तारे के रूप में टिमटिमा रहे हो
और यही सच है
बस यही सच है
और कुछ नही ?????????????????
निर्मल मन की तडपती व्यथा,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

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