वो चिंतन है या भविष्य या वर्तमान की चिंता
वो भेद करना बहुत मुस्किल होता है
हाँ समय बीतता जाए तो धीरे धीरे हमे पता सा चल जाता है
की ये चिन्तन है या चिंता है दोनों में फर्क है ये बतलाता है
लेकिन कुछ भी हो
इसमें खो के
हम खुद से अनजान से हो जाते है
इक नीले आस्मां में उड़ते उड़ते
जाने कहा खो जाते है
इसमें भी कभी सुखद तो कभी ये दुःख का एहसास कराता है
कुछ लोग इसको ध्यान तो कुछ लोग योग कहते है
कुछ साधना तो कई लोग वियोग कहते है
इसमें फल आंसुओ के रूप में कभी कभी आँखों से आता है
हाँ समय बीतता जाए तो धीरे धीरे हमे पता सा चल जाता है
की ये चिन्तन है या चिंता है दोनों में फर्क है ये बतलाता है

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