अनंत इच्छाये जगती है
ये तृप्त है या अतृप्त
ये नही पता मुझे
किन्तु इतना जरूर पता है
की कुछ तो है
जो मन ही मन
इस निश्छल ह्रदय से खेलता रहता है
कुछ तो है परंतु
ये बात अंदर ही अंदर परेशान कर रही है
फिर भी मन में आशा की किरण प्रज्वलित है
और जैसे मेरे कानो में चुपके चुपके मद्धम मद्धम कुछ कह रही है
की रुक जाओ ठहर जाओ
कोई है जो राह में है
तुम्हारे लिए
शायद यही तुम्हारी मंजिल हो
शायद यही हो तुम्हारी मंजिल
हे ईश्वर।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।

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