
क्यों मैं अपने आपसे अनभिज्ञ हु
क्यों कई सवालों की क़ैद में खुद को पाता हु
क्या तेरा है क्या मेरा है
जाने इस भवर में ही उलझा जाता हु
कितने लम्हों की ये जिन्दगी है
ये कोई नही जानता है
फिर भी मैं का अहं
जाने क्यों परेशान सा है
इसी कसमकस में
सबकी दुनिया वीरान सी है
मैं तुमसे लड़ता हु
तुम किसी और से
और किसी और से
क्यों इतने समझदार होकर भी
हर लम्हा तन्हा बिताता हु
क्यों मैं अपने आपसे अनभिज्ञ हु
क्यों कई सवालों की क़ैद में खुद को पाता हु
इंसानियत क्या है
क्यों ये दिन बदिन धुंधली हो रही
क्यों ये विस्वास की नदी
हर पल सिकुड़ रही
क्यों ये इंसान अस्तित्वहीन होता जा रहा
जो आइना चमकता था प्यार का कभी
वो पल पल हर पल धुंधलाता जा रहा
हा इसी में मैं अपने मन में घुलता जाता हु
क्यों मैं अपने आपसे अनभिज्ञ हु
क्यों कई सवालों की क़ैद में खुद को पाता हु
क्यों कई सवालों की क़ैद में खुद को पाता हु
क्या तेरा है क्या मेरा है
जाने इस भवर में ही उलझा जाता हु
कितने लम्हों की ये जिन्दगी है
ये कोई नही जानता है
फिर भी मैं का अहं
जाने क्यों परेशान सा है
इसी कसमकस में
सबकी दुनिया वीरान सी है
मैं तुमसे लड़ता हु
तुम किसी और से
और किसी और से
क्यों इतने समझदार होकर भी
हर लम्हा तन्हा बिताता हु
क्यों मैं अपने आपसे अनभिज्ञ हु
क्यों कई सवालों की क़ैद में खुद को पाता हु
इंसानियत क्या है
क्यों ये दिन बदिन धुंधली हो रही
क्यों ये विस्वास की नदी
हर पल सिकुड़ रही
क्यों ये इंसान अस्तित्वहीन होता जा रहा
जो आइना चमकता था प्यार का कभी
वो पल पल हर पल धुंधलाता जा रहा
हा इसी में मैं अपने मन में घुलता जाता हु
क्यों मैं अपने आपसे अनभिज्ञ हु
क्यों कई सवालों की क़ैद में खुद को पाता हु

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