क्यों मैं अपने आपसे अनभिज्ञ हु Kavita house 9:06 PM No comments क्यों मैं अपने आपसे अनभिज्ञ हु क्यों कई सवालों की क़ैद में खुद को पाता हु क्या तेरा है क्या मेरा है जाने इस भवर में ही उलझा जाता हु कितने लम्हों की ये जिन्दगी है ये कोई नही जानता है फिर भी मैं का अहं जाने क्यों परेशान सा है इसी कसमकस में सबकी दुनिया वीरान सी है मैं तुमसे लड़ता हु तुम किसी और से और किसी और से क्यों इतने समझदार होकर भी हर लम्हा तन्हा बिताता हु क्यों मैं अपने आपसे अनभिज्ञ हु क्यों कई सवालों की क़ैद में खुद को पाता हु इंसानियत क्या है क्यों ये दिन बदिन धुंधली हो रही क्यों ये विस्वास की नदी हर पल सिकुड़ रही क्यों ये इंसान अस्तित्वहीन होता जा रहा जो आइना चमकता था प्यार का कभी वो पल पल हर पल धुंधलाता जा रहा है इसी में मैं अपने मन में घुलता जाता हु क्यों मैं अपने आपसे अनभिज्ञ हु क्यों कई सवालों की क़ैद में खुद को पाता हु Share This: Facebook Twitter Google+ Stumble Digg Email ThisBlogThis!Share to XShare to Facebook
0 comments:
Post a Comment