जिन्दगी तुम इतनी मधुर हो जाओ सभी के लिए
की न कोई भेद भाव हो ,
ना किसी से किसी प्रकार की इर्ष्या ,
न कोई छोटा
न कोई बड़ा
न अमीर
न गरीब
बस चारो तरफ खुसिया
चारो तरफ प्यार
बस इतनी सी है गुजारिस
बस इतनी सी है गुजारिस
पूरी करदे मेरी सिफारिस
जो पास थे तेरे मैं
तुझको ही देखता मैं रहता था
वो बार बार छत पर चढ़कर तुझमे
ही बार बार दिल ये खोता था
इक बार दिल ने सोचा यही
की तुझसे दूर होके भूल जाऊ तुझे
दूर जो तुझसे गया हु जबसे
हर पल दिल मेरा ये रोता था
दूर जो तुझसे गया हु जबसे
हर पल दिल मेरा ये रोता था ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कुछ लम्हे हाँ कुछ लम्हे कई बार ऐसे गुजरते हैं हमारी जिन्दगी में
हम्म जो गुजर तो जाते है लेकिन लाखो हंसी पल हमारे लिए छोड़ जाते है
जिन्हें हम यादे कहते हैं
हाँ सच में वो यादे जिनमे हर बार खोकर जैसे हर बार इक नयी जिन्दगी पा जाते है
जिससे बाहर आने का मन कभी नही करता बस उन्ही यादो में खोये रहे ना जागे ना सोये कभी हँसे तो कभी रोये
हायो रब्बा की मैं करा
मुसाफिर की तरह चलते जा रहे है
इस जीवन चक्र को पूरा करते करते
कुछ तो लक्ष्य है मेरे भी
लेकिन मैं इनके पीछे नही भाग सकता
प्रयासरत रहूँगा सदैव किन्तु
अपने कर्तव्य से विमुख होकर नही
अपने धर्म से गद्दारी करके नही
अमानव बनकर नही
निस्वार्थ भाव से
आगे बढ़ता रहूँगा
कदम से कदम मिलाकर चलता रहूँगा
लेकिन किसिसको गिराकर नही
सबको साथ लेकर
सबके साथ चलकर
ये शब्द है मेरे
जीवन की सत्यता और मेरी कहानी
मैं जानता हु राह है कठिन
पर मैं चलूँगा
आगे बढूंगा
जिन्दगी एक बार तू हाँ यु ही मिल जा मुझे
रौशनी इक बार तू हाँ यु ही मिल जा मुझे
भटका हु दरबदर मैं अंधेरो में ही
कोई जरिया कोई रास्ता कोई मंजिल मिल जाये भी
मैं थका पर न रुका
संग चल रहा शायद तू भी
ए खुदा मेरे मालिक थोडा रहम कर मुझपर भी
जिन्दगी एक बार तू हाँ यु ही मिल जा मुझे
रौशनी इक बार तू हाँ यु ही मिल जा मुझे
हमे तो कहते हुए और देखकर आत्म ग्लानि होने लगती है जब भी मैं टेलीविज़न पर अपने प्यारे राजनेताओ को देखता हु चाहे वो किसी भी पार्टी विशेष से क्यों ना हो नाही उन्हें देश की चिंता है ना देश की जनता की वो अपना वोट बैंक चमकाने की खातिर किसी भी हद तक गिर सकते है उन्हें ये भी ध्यान नही रहता की वो अपने साथ अपने पद की गरिमा और साथ साथ देश की इज्जत भी मिटटी में मिला रहे है इतना ज्यादा और इस हद तक नैतिक पतन हो जाएगा
हे भगवान् इन नेताओ को सद्बुद्धि दो या फिर ऐसे नेताओ को अपने पास ही बुला लीजिये जिनको सही और गलत में अंतर नही पता जिनको शब्द और अपशब्द में भेद नही मालूम जिनको सिर्फ स्वार्थ में ही परमार्थ दीखता है
मन रह रहकर अब डरता है
जाने क्यों ना जाने क्यों
शूलो की तरह कोई चुभता है
जाने क्यों ना जाने क्यों
इक राह बनी थी पनघट की
पतली पगडण्डी पर चलकर
ना पनघट ना राह बची
जाने क्यों ना जाने क्यों
हँसते हँसते मन रोता है
जाने क्यों ना जाने क्यों
पहले था सब हरा भरा
चारो तरफ थी खुशहाली
कैसी ये अंधियारी छाई
जाने क्यों ना जाने क्यों
कोई नाग सा मुझको डसता है
जाने क्यों ना जाने क्यों
रिश्तो की डोर है होती क्या
तुझसे बिछड़ा तो मैं जाना
छत पर बैठी गोरैया का कलरव
सुनकर होता था दीवाना
रिश्तो की डोर है होती क्या
तुझसे बिछड़ा तो मैं जाना ...............
जब तुम रोती थी
था मैं हँसता
अब क्या है आंसू
ये पहचाना
रह कर दर्द उमड़ता है
दिल रह रह कर रोता है
तुम आ जाओ मेरे पास में जो
बस तेरी ही राह तकता है
अब लगता है तुम ही हो अपनी
सारा जग जैसे बेगाना
रिश्तो की डोर है होती क्या
तुझसे बिछड़ा तो मैं जाना