कुछ लफ़्ज़ों की दुनिया में सिमटा
कुछ तंग है कुछ बेरंग है
लोग जाने क्या क्या कहते है
शायद कटी पतंग बन के आया हूँ
हाँ कुछ मजबूरी है
इसीलिए जुदा अपनी जान से हूँ
विरह की अगन होती है कैसी
शायद आज मैं समझ रहा हूँ
कतरा कतरा बिखर कर मैं
मन का ये आसिया बनाया है
फिर लोगो की नजरो में
एक गुनाहगार बन के आया हु

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