क्यों है सुनसान सा मन का मकान मेरा
जो सुनता नही मेरे ही मन की ,,,]
ह्रदय मेरा भी स्पंदित होता है कभी कभी ,,,
भले ही रफ्तार है उसकी ,,,मद्धम मद्धम ,,
हाँ मैं भी सोचता हु ..,,,जब मैं ,,
होता हु क्षितिज ,,,और,,आकाश के मध्य में ,,,
एक जीवन जो मेरे भाग्य में है ,,,
और ,,एक ,,जो मेरे सपनो में वीरान सा है ,,,
कभी कभी इन आशाओ में ,,,में कुछ कुछ निराशाओ से घिरा पाता हु जब ,,
मैं अपने को अपने में ही मेहमान सा खुद को पाता हु जब ,,,
बस यही है ,,,सुनसान और वीरान सा मन का मकान मेरा,,,
क्यों है सुनसान सा मन का मकान मेरा
जो सुनता नही मेरे ही मन की ,,,]
जो सुनता नही मेरे ही मन की ,,,]
ह्रदय मेरा भी स्पंदित होता है कभी कभी ,,,
भले ही रफ्तार है उसकी ,,,मद्धम मद्धम ,,
हाँ मैं भी सोचता हु ..,,,जब मैं ,,
होता हु क्षितिज ,,,और,,आकाश के मध्य में ,,,
एक जीवन जो मेरे भाग्य में है ,,,
और ,,एक ,,जो मेरे सपनो में वीरान सा है ,,,
कभी कभी इन आशाओ में ,,,में कुछ कुछ निराशाओ से घिरा पाता हु जब ,,
मैं अपने को अपने में ही मेहमान सा खुद को पाता हु जब ,,,
बस यही है ,,,सुनसान और वीरान सा मन का मकान मेरा,,,
क्यों है सुनसान सा मन का मकान मेरा
जो सुनता नही मेरे ही मन की ,,,]


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