बस यही सोच कर तेरे
पद चिन्हों के पीछे भागता रहता है ये मन
जब बजता था वो हॉर्न
चिलचिलाती हुई गर्मी में
हम अपने टूटे हुए छप्पर के नीचे
सुनते रहते थे,,और वो हॉर्न की आवाज सुनते ही
जैसे मन में आशा की किरण
जल उठती थी
वो बरगद के पत्तो पर
बर्फ के रंग बिरंगे छल्ले
और उसमे तरह तरह की
शक्कर की चासनी और शहद
अब नही दिखती तुम
नाही बच्चो में तुम्हारा इंतज़ार
शायद तुम्हारी जगह
किसी और ने लेली है
वो मीठा जहर है
जो आज के लोगो को
खूब भाता है
और मन यही ठिठुरकर अपने आप से पूछता है
कि सच में जाने तू कहाँ है
गाव की हर गली में
कोई कांच की शीशी
प्लास्टिक का सामान हो
या लोहे के टुकड़े हम ढूंढते ही रहते थे
क्योकि इन्ही के बदले
हमे तुम मिलती थी
सच में वो मीठी मीठी पट्टी गुड वाली
उसमे मूंगफली के दानो वाली
कितना स्वाद था उसमे
आज जमाना भी बेस्वाद हो गया है
तू भी जमाने के साथ ओझल हो गयी
और नजरे ढूंढती रहती है
एक ख़ुशी की खोज में
उस स्वाद की खोज में
उस बचपन की खोज में
उस टूटे हुए छप्पर की खोज में
और कुछ भी नही मिलता
फिर मेरे मन सिसक सिसक कर
बहते हुए आंसुओ से पूछते है
की शायद तू अब नही यहा है
और,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
फिर यही आवाज आती है ,,,,,,,,,,,,
सच में जाने तू कहा है

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