उन बाहों का मैं हार बनू
जो कल तक था इन आँखों में
उन नैनों का श्रींगार बनू
ए वक़्त ठहर जा कुछ पल यु ही
उन बाहों का मैं हार बनू
हां सेज सजी है सपनों की
कुछ बेगाने से अपनों की
क्यों राह तके मेरा ये मन
आ जाओ इसमें प्रियवर तुम
दिल के डेरे में आकर के
सूने मन का आधार बनो
मन का क्या है ये निश्छल निर्मल
इन अधरों पर मैं आज सजू
ए वक़्त ठहर जा कुछ पल यु ही
उन बाहों का मैं हार बनू
जो कल तक था इन आँखों में
उन नैनों का श्रींगार बनू
है ऊँचे ऊँचे पर्वत ये
नदियों की धारा बीच बहे
है ह्रदय में बसती स्मृतिया तेरी
उस बीच में तेरा नीर बहे
है धरा पे मैं तो चलता रहा
कभी गगन से हो जाए संगम
दिल के कोरे कागज पर
मैं कोई प्रेम का गीत लिखू
ए वक़्त ठहर जा कुछ पल यु ही
उन बाहों का मैं हार बनू
जो कल तक था इन आँखों में
उन नैनों का श्रींगार बनू
कभी नयन झुके कभी सरमाये
हौले से तेरे जो पास आये
चूडियो की खनखन जो सुने
दिल की धड़कन कुछ बढ़ जाए
है धरा नही वो गगन नही
जो सूनी रातो में हो जाए मिलन
नयन की तपती झील में
डूब जाए हाय ये तन मन
सच कहेता हु मैं क्या क्या कहू
जीवन है ये संगीत लिखू
या मैं अपनी तेरी प्रीत लिखू
निर्मल मन की मैं जीत लिखू
या जग की पुरानी रीत लिखू
जो तुझ संग मेरा गुजरा है
हाँ वही अपना अतीत लिखू

0 comments:
Post a Comment