कुछ गुमसुम सा कुछ तन्हा सा ,,,,,,,,,
अचानक ही मेरी नजर चीटियों के झुण्ड पर पड़ी ,,,,,,,,,
जो निरंतर चलती जा रही
अपनी ही कतार में
कुछ इधर कुछ उधर
बिना विचलन के ,,,,,,,,,
जाने कहा से आ रही थी
जाने कहाँ को जा रही थी ,,,,,,,,,,,
मेरी उत्सुकता बढती जा रही थी
एक दिशा की तरफ मैं ध्यान से चलता गया
हाँ कुछ छोटे छोटे मिटटी के टुकड़े जो उनके आकार
से काफी बड़ी थी उनको धकेल रही थी
कुछ दूर पहुचने पर
मैंने देखा एक छोटी सी बिल थी
शायद वो उनका नया घर था
लेकिन हैरान कर देने वाली एकता
ग़ज़ब का साहस
अत्यंत ही परिश्रमी
ये सब देखकर जब मैंने अपने आपको
तौला ,,,,,,,,,,,,तो कुछ भी नही था
लेकिन उनके हौसले को देखकर
मेरा हौसला बढ़ गया
मुझे भी जीने की एक राह मिल गयी
इसलिए शुक्रिया इन चीटियों का
जो मुझ हारे को हारने नही दिया

0 comments:
Post a Comment