ये वही आज है
जिसके सपने देखे थे कल
नही ऐसा नही हो सकता
ये कैसा संवाद है
या किसी विवाद की आहट
जैसे बोझिल लग रहा है जीवन
क्यों ना उन नस्लो को
जड़ से ही काट दूं
जिनने छीनने की कोशिश की है
हमारा े चैनो अमन की
जो देश का सम्मान नही कर सकते
वो सिर्फ उपेक्षित होने चाहिए
क्यों हम सहन करे ऐसी असहनशीलता
ऐसे समाज से अच्छा समाजहीन हो जाए हम
कुछ इसीलिए भटक रहा है ये मन
जय हिन्द
जय भारत
निर्मल अवस्थी एक विचार

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