अकुला सा रहा है
पछता सा रहा है
क्यों बरस रही है
रह रह के ये अगन
ना किसी से कुछ माँगा
ना किसी को चाहा
फिर क्यों नीरस है ये जीवन
कुछ तो चाहता है
पर शब्द नही है
निः शब्द सा है
कहता तो है बस आँखों से कुछ
कुछ पढ़ पाता हु
कुछ धुंधला जाता है
फिर भी जाने क्यों
आशान्वित है ये मन

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