जिसके सामने पहाड़ जैसी जिंदगी का सफ़र अकेले
और तन्हा तय करनी हो
जिसका सहारा एक अबोध बालक हो
जो कल तक हर तरह के श्रृंगार से सजी रहती थी
आज उसका आभूषण सफ़ेद वस्त्र हो
जो कभी हर समय हंसती खिलखिलाती रहती थी
आज उसके ह्रदय में असहनीय विरह की वेदना हो
सिर्फ एक इंसान के खो जाने से
एक पत्नी विधवा हो गयी
एक माँ का आँचल सूना हो गया
पिता के बुढ़ापे का सहारा छीन गया
भाई बिन भाई का हो गया
नन्हा सा बच्चा बिन पिता का हो गया
बस कुछ लम्हों में
सब कुछ बदल गया
पर मैं ईश्वर से पूछना चाहता हु की इतनी असहनीय पीड़ा क्यों देते है ऐसे इंसान को जिसने लोगो को मुश्कान के सिवा कुछ नही दिया
हे राम।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।

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