कई सपने संजोता है और उन सपनो के अनंत
आसमान में स्वतंत्र रूप में बिना किसी रोक टोक के
उड़ना चाहता है पर ये कोई जरूरी तो नही है की हमारे हर सपने हर इच्छा पूरी ही हो तो क्यों हम खुद के गुलाम हो जाते है क्योकि अगर हमारी इच्छाये पूरी नही होती है हमारे सपने कांच की तरह टूटते है तो अंदर ही अंदर हम भी शीशे की तरहा बिखर जाते है फिर खुद को सम्भालना अत्यंत ही कठिन ही जाता है जैसा हमारे साथ हुआ है हम भली भांति जानते है की हर मनुष्य की मृत्यु निश्चित है जिसने जन्म लिया है उसको मृत्यु से किसी क्षण भी सामना हो सकता है किसी भी मोड़ पर ये मोह रुपी शरीर जो हमारा आवरण मात्र है वो कभी भी हमसे अलग हो सकता है और जिस धैर्य को अपना सहारा समझते थे वो भी टूट सा गया है और एक ऐसे दुःख के सागर में हम डूबे हुए है जिससे तुरंत निकलना बहुत मुश्किल है
हे राम।।।।।।।।।।।।

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