की भूखे हम भटकते है ,,,,,रोटी को तरसते है ,,,,
मिल जाए कुछ हंसी वो पल,,,,
जिसमे बीत जाए मेरे कुछ पल,,,
आसमा से बरसती आग को सहना सिखा दो मौला,,,,
की भूखे हम भटकते है ,,,,,रोटी को तरसते है ,,,,
कोई हिन्दू है लड़ता है ,,,
कोई मुश्लिम है लड़ता है ,,,
मैं तो मंदिर भी जाती हु,,,
मैं तो मस्जिद भी जाती हु ,,,
वही जो मिलता खाती हु ,,,
हाँ इन भटके ,,लोगो को
प्यार का मतलब सिखा दो मौला,,,,
की कुछ लम्हे हमे भी दे दो ओ मौला,,,,
की भूखे हम भटकते है ,,,,,रोटी को तरसते है ,,,,

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