जिसमे तेरा बसेरा है ,,,,,,
फिर भी दिन रात ये तडपे,,,
सारी सारी रात ये जागे,,,
हाँ मेरे मन में है तू ही ,,,,
पास आके क्यों तू भागे ,,,
हाँ मेरे मन है तू ही ,,,,
फिर भी क्यों है तू इतना निर्मोही
रे क्यूँ है तू इतना निर्मोही,,,,,
मेरी साँसों में तू मनमोहन,,,
ये गउए व्याकुल है तुम बिन,,,
है सूना सूना वृन्दावन,,
तुझे जब याद करती है ,,,,
ये आँखे खूब बरसती है,,
नही तुझ बिन और कोई,,,
फिर भी क्यों है तू इतना निर्मोही
रे क्यूँ है तू इतना निर्मोही,,,,
ना अब तरसाओ अंखियो को,,,
ना अब तडपाओ सखियों को ,,,
वही बंसी तुम्हारी है ,,,
हाँ हम भी बजाते है ,,,
की इस धुन को सुनकर के
आ जाएगा मेरा मोहन,,,
लेकिन ना वो धुन निकलती है
ना हमसे बंसी बजती है ,,,,
ना आया मेरा मोहन ,,,,
सिसक कर सब सखी रोती ,,,
वही बंसी की धुन को
सुना दो मेरे मनोहन,,,
की तेरे विरह में कान्हा
ये मन बन जाएगा जोगी ,,,
फिर भी क्यों है तू इतना निर्मोही
रे क्यूँ है तू इतना निर्मोही,,,,

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