वो राहे
क्यों गुमसुम है
क्यों कुछ
बोलती नही
क्यों कुछ
कहती नही
जो हमेशा
खिलखिलाती रहती थी
हमे हरपल
गुदगुदाती रहती थी
वही आज
तन्हा है
अपने पी
के बिन
हाँ सच
में अपने पी के बिन
ऐसा क्यों
होता है
जिसकी कभी
कल्पना ही नही की हो
मन व्यथित
जरूर होता है
पर ये भी
जिन्दगी की इक कड़ी जो है
मन उदास
है तन्हाई का साथ है
बस यही है
मेरे मन की उलझन
कभी कभी
आहट सी होती है
मन में
कुछ सुगबुगाहट के साथ
एक आस सी
जगती है
एक मन
कहता है की पीछे मुड़कर देखू
दूसरा दिल
धक् धक् करता है
डरता है
कभी घबराता है
की कही वो
नही हुए
तो बढ़
जायेगी सीने की जलन
जो हमेशा
खिलखिलाती रहती थी
हमे हरपल
गुदगुदाती रहती थी
वही आज
तन्हा है
अपने पी
के बिन


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