तेरे आगोश में आके
सिमट सा जाता हु मैं
जैसे कोई नदी उमंगों से भर जाती है
जब मिलती है समन्दर से
हाँ लहरे भी कई उठती है
ठहर सी जाती है पल में
हाँ ये शांत ह्रदय की थमती हुई थकन है ये
जैसे भूला हुआ कोई अपना
मुड़के हमे आवाज देता है
जैसे अपना कोई जब दिल से हमे
फिर याद करता है
फिर वही हिचकी बन करके हमे कुछ गुदगुदाता है
जैसे भूला हुआ अपना हमे फिर याद आता है
वही मंजिल वही साहिल
वही है हम वही हो तुम
फिर क्यों अजनबी तुम बनके
रहती हो मेरे दिल में
फिर क्यों अजनबी बनकर
रहती हो मेरे दिल में
सिमट सा जाता हु मैं
जैसे कोई नदी उमंगों से भर जाती है
जब मिलती है समन्दर से
हाँ लहरे भी कई उठती है
ठहर सी जाती है पल में
हाँ ये शांत ह्रदय की थमती हुई थकन है ये
जैसे भूला हुआ कोई अपना
मुड़के हमे आवाज देता है
जैसे अपना कोई जब दिल से हमे
फिर याद करता है
फिर वही हिचकी बन करके हमे कुछ गुदगुदाता है
जैसे भूला हुआ अपना हमे फिर याद आता है
वही मंजिल वही साहिल
वही है हम वही हो तुम
फिर क्यों अजनबी तुम बनके
रहती हो मेरे दिल में
फिर क्यों अजनबी बनकर
रहती हो मेरे दिल में


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