हे माँ वीणावादिनी माँ
चरणों में रहू मैं तेरे सदा
मन का अन्धकार मिटा दो
मैं शांत रहूँ निश्छल मैं रहूँ
मन में ऐसी अलख जगा दो माँ
जब भी देखू तुझको देखू
जब भी सोचूँ तुझको सोचूँ
ज्ञान प्रकाश की नित ज्योति जले
मेरे ह्रदय को मंदिर बना दो माँ
बनके उसमे सुन्दर मूरत
अपना दरबार लगा दो माँ
चरणों में रहू मैं तेरे सदा
मन का अन्धकार मिटा दो
मैं शांत रहूँ निश्छल मैं रहूँ
मन में ऐसी अलख जगा दो माँ
जब भी देखू तुझको देखू
जब भी सोचूँ तुझको सोचूँ
ज्ञान प्रकाश की नित ज्योति जले
मेरे ह्रदय को मंदिर बना दो माँ
बनके उसमे सुन्दर मूरत
अपना दरबार लगा दो माँ


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