सपनो की इस बारिश में भीग रहे है हम और तुम
नैनों की परछाई में क्यों न हो जाये हम तुम
गुम
कुछ तुम कहदो उन लम्हों से
कुछ हम भी कहे उस सावन से
जिसने हमे तड़पाया है
जिसने हमे तरसाया है
आ जाओ मेरे प्रियवर तुम
अब विरह घडी है बीत गयी
दुःख की लडिया सब टूट गयी
मन के मंदिर की मूरत का
मन से हो जाए आज मिलन
सपनो की इस बारिश में भीग रहे है हम और तुम
नैनों की परछाई में क्यों न हो जाये हम तुम
गुम


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