मन को शांत और स्थिर रखना भी एक कला है जिसमे पारंगत होने के बाद दुनिया और प्रकृति की सुन्दरता के निकटतम स्तर पर हम पहुच जाते है और परमात्म दर्शन के लिए स्वयं ही अनुकूल परिस्थितिया बनने लगती है हे इश्वर ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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