है निशा रूप,,,अन्धकार की जननी ,,,,,
है शेष मात्र ,,उजियारा इसमें,,
तमस भरा जो शांत समुद्र सा,,,
लोभ मोह का सागर है ये ,,,
शीतल जल ,,सरिता में विह्वल,,,
है इठलाती चंचल निर्मल ,,,
है असंख्य से छिपे हुए,,,
पग पग पर जो मगर (मगरमच्छ) है इसमें,,
है निशा रूप,,,अन्धकार की जननी ,,,,,
है शेष मात्र ,,उजियारा इसमें,,
तीनो लोको का मिलन जहां पर ...
सूरज भी ढल जाता पल भर में ...
लालिमा का आवरण ओढ़,,
खुद खो हो जाता पल भर में ,,,
नदिया पोखर,,,अब है विलुप्त से ,,
देखो कंक्रीट का शमशान मनोहर,,
है सजा हुआ ,,कृत्रिम सुमन से,,,
है गंधहीन संसार ये देखो ,,,
है नही पेड़ ,,,ना लहलहाते खेत ,,,
बैरी खुद का इंसान हुआ ,,
स्वार्थ अब इतना कुटिल हुआ,,,
परमार्थ भी जैसे है व्याकुल ,,,
है निशा रूप,,,अन्धकार की जननी ,,,,,
है शेष मात्र ,,उजियारा इसमें,,
जीवन यात्रा अब नही सुगम,,,तिल तिल होती जाती कम,,,
तन विचलित है ,,मन स्थिर है ,,,जैसे हो कोई दिवास्वप्न,,,
पहले नदिया थी झीले थी ,,,,
थे हरे भरे वृक्ष,,,थे खग मृग भी,,
था शीतल जल निर्मल ,,,चंचल,,
थी सुन्दर सुबहे उत्साह भरी ,,
अब प्रदूषण सा राक्षस है ,,,
अब ऑक्सीजन की जगह कार्बन डाई ऑक्साइड ने ले ली,,,
है अमोनिया,,कार्बन मोनो ऑक्साइड
सल्फर डाई ऑक्साइड,, जो है घातक
ये सब स्वार्थ से उपजे है ,,,,
बादल में रह रह कर गरजे है ,,
अब नही चांदनी राते ,,,जो,,,धुंध ने उसकी जगह ले ली,,,
धुंधला सा दीखता है अब वो ,,,सुन्दरता उसकी क्षीण हुई,,
है चंद्रग्रहण,,,या हम सब है ग्रहण ,,,
ये जटिल प्रश्न सुलझाओ ,,,
ये जटिल प्रश्न सुलझाओ ,,
,ये जटिल प्रश्न सुलझाओ ,,,
ये जटिल प्रश्न सुलझाओ ,,,
है निशा रूप,,,अन्धकार की जननी ,,,,,
है शेष मात्र ,,उजियारा इसमें,,
है शेष मात्र ,,उजियारा इसमें,,
तमस भरा जो शांत समुद्र सा,,,
लोभ मोह का सागर है ये ,,,
शीतल जल ,,सरिता में विह्वल,,,
है इठलाती चंचल निर्मल ,,,
है असंख्य से छिपे हुए,,,
पग पग पर जो मगर (मगरमच्छ) है इसमें,,
है निशा रूप,,,अन्धकार की जननी ,,,,,
है शेष मात्र ,,उजियारा इसमें,,
तीनो लोको का मिलन जहां पर ...
सूरज भी ढल जाता पल भर में ...
लालिमा का आवरण ओढ़,,
खुद खो हो जाता पल भर में ,,,
नदिया पोखर,,,अब है विलुप्त से ,,
देखो कंक्रीट का शमशान मनोहर,,
है सजा हुआ ,,कृत्रिम सुमन से,,,
है गंधहीन संसार ये देखो ,,,
है नही पेड़ ,,,ना लहलहाते खेत ,,,
बैरी खुद का इंसान हुआ ,,
स्वार्थ अब इतना कुटिल हुआ,,,
परमार्थ भी जैसे है व्याकुल ,,,
है निशा रूप,,,अन्धकार की जननी ,,,,,
है शेष मात्र ,,उजियारा इसमें,,
जीवन यात्रा अब नही सुगम,,,तिल तिल होती जाती कम,,,
तन विचलित है ,,मन स्थिर है ,,,जैसे हो कोई दिवास्वप्न,,,
पहले नदिया थी झीले थी ,,,,
थे हरे भरे वृक्ष,,,थे खग मृग भी,,
था शीतल जल निर्मल ,,,चंचल,,
थी सुन्दर सुबहे उत्साह भरी ,,
अब प्रदूषण सा राक्षस है ,,,
अब ऑक्सीजन की जगह कार्बन डाई ऑक्साइड ने ले ली,,,
है अमोनिया,,कार्बन मोनो ऑक्साइड
सल्फर डाई ऑक्साइड,, जो है घातक
ये सब स्वार्थ से उपजे है ,,,,
बादल में रह रह कर गरजे है ,,
अब नही चांदनी राते ,,,जो,,,धुंध ने उसकी जगह ले ली,,,
धुंधला सा दीखता है अब वो ,,,सुन्दरता उसकी क्षीण हुई,,
है चंद्रग्रहण,,,या हम सब है ग्रहण ,,,
ये जटिल प्रश्न सुलझाओ ,,,
ये जटिल प्रश्न सुलझाओ ,,
,ये जटिल प्रश्न सुलझाओ ,,,
ये जटिल प्रश्न सुलझाओ ,,,
है निशा रूप,,,अन्धकार की जननी ,,,,,
है शेष मात्र ,,उजियारा इसमें,,


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