क्यों ऐसा क्यों होता है की हम अपने नैतिक कर्तव्यों अपनी जिम्मेदारियों या जो भी भला बुरा होता है हमारे साथ हम उनके बारे में सिर्फ बात ही करते है सिर्फ बात ,और बातो तक ही सीमित हो जाते है ,हाँ बातो में में तो हम सब चाँद तारे तोड़ने की भी बात करते है परन्तु असलियत में जब उन जिम्मेदारियों को निभाने की बात आती है तब हम निःशब्द हो जाते है जबकि ऐसा नही होना चाहिए लेकिन ऐसा ही होता है क्यों आखिर क्यों ???????????????? कुछ ऐसे सवाल जो मेरे जहन में गूंजते रहते है जो कभी कभी इतने उग्र हो जाते है मेरे मन में की मन सुप्तावस्था से जागकर अशांत हो जाता है क्या आप लोगो के भी साथ भी ऐसा होता है चाहे वो सामाजिक जिम्मेदारी हो या प्रकृति के प्रति हमारी जिम्मेदारी हो
शायद हम लोगो को उजड़ने से पहले चिंतन और मनन करने की जरूरत है और समय रहते ही जागने की भी
शायद हम लोगो को उजड़ने से पहले चिंतन और मनन करने की जरूरत है और समय रहते ही जागने की भी


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