तेरी ही राहो में अक्सर भटकता क्यों है मेरा मन
ना जाने कैसी ख्वाइश है की जिसमे पागल है ये मन
की इकटक देखते रहने में होता क्यों दीवानापन
मैं सब कुछ भूल करके अपना कर दिया सब कुछ अब अर्पण
तेरी ही राहो में अक्सर भटकता क्यों है मेरा मन
ना जाने कैसी ख्वाइश है की जिसमे पागल है ये मन
वही यादे वही मंजर
वही हु मैं पर तुम नही
वही पंछी वही नदिया
वही हु मैं पर तुम नही
कहा ढूंढें तुझे ये दिल
कही पागल न जाऊ
ये धड़कन भी धडकती है
लेकिन मैं हु पर तुम नही
ना जाने कैसी ख्वाइश है की जिसमे पागल है ये मन
की इकटक देखते रहने में होता क्यों दीवानापन
मैं सब कुछ भूल करके अपना कर दिया सब कुछ अब अर्पण
तेरी ही राहो में अक्सर भटकता क्यों है मेरा मन
ना जाने कैसी ख्वाइश है की जिसमे पागल है ये मन
वही यादे वही मंजर
वही हु मैं पर तुम नही
वही पंछी वही नदिया
वही हु मैं पर तुम नही
कहा ढूंढें तुझे ये दिल
कही पागल न जाऊ
ये धड़कन भी धडकती है
लेकिन मैं हु पर तुम नही


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