अति ही अंत का कारण होती है सभी इस बात से वाकिफ है मगर फिर भी हम अपनी सीमा क्यों पार करते है ये बिलकुल समझ से परे है क्या हम अपनी आदतो अपनी इच्छाओ के दास इस कदर हो गए है की हमारे लिए क्या उचित है और क्या अनुचित है इसका भी संज्ञान नही है
हमे इस निद्रा से उठना होगा लेकिन क्या हम तब उठेंगे जब हमारे पास सहेजने के लिए कुछ भी नही होगा ????????????
हमे इस निद्रा से उठना होगा लेकिन क्या हम तब उठेंगे जब हमारे पास सहेजने के लिए कुछ भी नही होगा ????????????


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