कुछ कहो दिल की तुम कुछ सुने दिल की हम इक हंसी शाम फिर से सजा दीजिये सुर्ख अपने लबो पे मेरे सनम नाम मेरा भी तो गुनगुना लीजिये मन है प्यासा मेरा मुद्दतो से सजन हर इक पल में तरसे है मेरे नयन ह्रदय भी मरुभूमि सा बन गया इसमें प्रेम के कुछ सुमन तो खिला दीजिये
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