कल जिनके हर लम्हे में मैं था बसा
सच में वक़्त का ग़ुलाम हर सख्स है
जो पल में किसको क्या बना दे
किसकी पहचान बदल कर रख दे
किसको निस्तेनाबूत कर दे
इसलिए आज मैं अजनबी हु अपने ही शहर में
ये गलिया भी मेरी थी
ये पनघट भी मेरा
ये लोग भी मेरे अपने थे
जिनके साथ मैं सादिया गुजारने की बात करता था
आज वो नही संग मेरे
इसलिए अपनों में गुम मैं अपनों की तलाश करता हु

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