मन में आस अनेक लिए
आँखों में प्रेम की प्यास सखी
है बसंत की बेला फिर भी
जाने क्यों मन है उदास सखी
तन मन ये मनुहार करे
आ जाओ तुम इस प्रेम गली
मन में आस अनेक लिए
आँखों में प्रेम की प्यास सखी --------------------------
----------आ जाओ तुम इस प्रेम गली ---------------
----------आ जाओ तुम इस प्रेम गली ---------------
आज भी वो रुत आई
जो कल बीती थी रात सखी
फिर भी ये चितवन सूना है
बीती वो अलबेली रात सखी
अब हर पल एहसास ये होता है
जब तुम बिन ये दिल रोता है
उस रैना की बात थी क्या
ये ना पूछो तुम आज सखी
मन में आस अनेक लिए
आँखों में प्रेम की प्यास सखी --------------------------
----------आ जाओ तुम इस प्रेम गली ---------------
----------आ जाओ तुम इस प्रेम गली ------------
विरह में तडपता निर्मल मन

0 comments:
Post a Comment