- तुफानो को भी चीर के हम आगे बढ़ते है
दम है दुनियावालो तो आजमाकर देख लो
हौसलों की बात क्या हम करे
आवाज से आवाज मिला के देख लो
धुप सौतन सी लगती है ग्रीष्म ऋतू में सखी
शरद ऋतू में साजन सी लागे मुझे
बरखा में जैसे हो जाए ये बावरी
और बसंत में मनोहर सी लागे मुझे
धुप सौतन सी लगती है ग्रीष्म ऋतू में सखी
शरद ऋतू में साजन सी लागे मुझे
कभी तपती है ये कभी शीतल है ये
कभी आये जाये पता ही नही
कभी तडपा के हमपे कहर ढाती है
कभी तरसा के आके चली जाती है
कभी सावन सी दिल पे बरस जाती है
कभी ज्येष्ठ सी दिल को जला जाती है
धुप सौतन सी लगती है ग्रीष्म ऋतू में सखी
शरद ऋतू में साजन सी लागे मुझे
- मेरा मन जब उदास होता है मै ही मै रहता हूँ न कोई साथ होता हैले लेता हूँ एक छोटी सी छड़ीचल देता हूँ अपनी बगिया मेंबस वही बैठ जाता हूँखुरपी से मिटटी को हटाता हूँनन्हे नन्हे पौधों के संग होता हु जब मैजाने कैसा सुखद एहसास होता हैउनके पत्तो से बाते करता हूँकुछ कहता हूँ अपनी मैकुछ उनकी सुनता हूँआता है जो हवा का झोकापौधे लहराते है पवन के संगझूम झूम कर वो नृत्य करते हैजैसे कोई शायर झूमे होके मस्त मलंगचीटियों की पंक्ति जाती थी उधरमैंने पुछा तुम जाती हो किधरउसमे से एक रूककर बोलीजाओ जी यु करो न ठिठोलीमैंने कहा रुको जरा बैठो मेरे संगहम भी बुझा ले अपने मन की प्यासमेरा मन जब उदास होता है
मै ही मै रहता हूँ न कोई साथ होता है
- इन्तहा हो गयी उनकी सितम ढाने की
की वो बेदर्द होते गये
हम दर्द से तडपते रहे
आह निकली नही उनके जहन से एक भी
और हम तिनका तिनका जिन्दगी में अपनी बिखरते गये
हर बूँद मेरी सूख गयी लहू बनके आँखों से मेरी
और वो बेवफा बारिसो की बूंदों का लुत्फ़ लेते रहे
- हमे भी जीने की आदत नही है सनम
की इंतज़ार में तेरे हर घडी गुजार रहेतडपते हम है तडपता हर लम्हा मेरे संगकी दीदार को तेरे ये जिन्दगी गुजार रहेअस्को से सींच सींच कर ये जिस्मऔर इस जिस्म में जिन्दगी बाकी है अभीअब तो आँखे भी नम नही होतीगम की परछाई में ये सदिया गुजार रहे

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