- पवित्रता और अपवित्रता के शब्दों में सिर्फ एक अक्षर का अंतर है क्योकि अ जोड़ देने मात्र से अपवित्रता शब्द बन जाता है
पवित्रता मनुष्य को शुद्ध करती है और अपवित्रता दूषित करती है
- क्रोध अग्नि की तरह दाहक होता है जो हमे अन्दर ही अन्दर जलाता रहता है और क्षमा और करुणा हमे एक अद्भुत और आनंदायक शांति की अनुभूति कराती है
अब ये हम पर निर्भर करता है की हम किसको चुनते है अथवा किसका चुनाव करते है
क्रोध
या
क्षमा
पवित्रता अगर ह्रदय में वास करती है तो सात्विकता मन में आ ही जाती है और ये ऐसा गुण है जो हमे हर अधर्म को करने से रोकता है और सदैव ही हमे सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने की शक्ति देता है वही कुटिलता कुविचार हमारे मन और ह्रदय को एक बीमारी की तरह ग्रसित कर लेते है और हम धीरे धीरे नरक के मार्ग पर चलते जाते है
- जीवन सत्य है
उसका हर पल मुस्करा कर जियो
यही जीवन का मूलमंत्र है - राजनीति में दिल पल पल मरता जाता है
और दिमाग का साम्राज्य पल पल बढ़ता जाता है

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