क्या सचमुच में मानव
समाज इतना क्रूर और कुटिल हो गया की उसे एक नन्हे बच्चे की मुस्कान या रोते हुए
बच्चो से कोई लेना देना नही या किसी कापते हुए बुजुर्ग जिनके हाँथ पैर कांप रहे हो
जो नाही सही चल सकते है ना उठ बैठ सकते है जिन्हें उम्र के इस पडाव में वाकई में
किसी न किसी सहारे की जरूरत है या वो नौजवान वर्ग जो हमारे भाई बहेन जैसी है उनके
कदम से कदम मिलकर चले आखिर हम इतना क्रूर और इतने निर्दयी कैसे हो सकते है की
इश्वर द्वारा रची गयी इस संपूर्ण सृष्टी को उजाड़ने और बर्बाद करने पर तुले है आखिर
ये हक़ हमे किसने दिया हमारी या किसी की भी उम्र का हमे नही पता की किस घडी हमारी
जिन्दगी की सुई रुक जाए और हमारी चलती दौड़ती साँसे यु ही कुछ ही पीएलओ में थम जाए
तो हम क्यों न एक दुसरे से प्यार करे क्यों ना किसी रोते हुए चेहरे पर मुस्कराहट
लाने की कोशिश करे क्यों न किसी के दर्द को बांटे क्यों ना किसी बुजुर्ग का सहारा
बनने की कोशिश करे एक बार करके देखिये मुझे नही लगता इससे ज्यादा आनंद ,सुकून हमे
किसी और काम से भी मिल सकता है मित्रो हम लोगो को आतंकित करना छोड़कर हर इंसान को
मानवता की राह पर चलना के लिए प्रेरित करे और खुद भी
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