कुछ बाते मुझे ये सोचने पर
विवस कर देती है की त्रेता युग में महाराज दशरथ की तरह प्रतापी राजा शायद ही कोई
रहा होगा जिनके मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जो भगवान् विष्णु के ही अवतार थे वो
पुत्र रूप में जन्मे थे जो चाहते वो पा
सकते थे धरती आकाश पाताल तीनो लोको में जयजयकार थी परन्तु लेशमात्र भी घमंड नही जो
श्रवण कुमार के तीर लगने से उनके माता पिता के श्राप को स्वीकार करते है वो चाहते
तो उनके माता पिता से झूठ भी बोल सकते थे या उनके सामने ही नही जाते परन्तु
उन्होंने ऐसा कुछ नही किया और आज कल मैं लोगो को देखता हु की थोड़े से पैसे अन्जाने
मात्र से उनकी परिभाषा ही बदल जाती है उनकी नैतिकता, उनका दायित्व,धर्म ,कर्तव्य
हर चीज से विमुख हो जाते है क्यों हम अपने पूर्वजो से महान विभूतियों से कुछ नही
सीखते क्यों इतने घमंडी और कर्तव्य विमूढ़ हो जाते है की स्वयं को ही भूल जाते है इससे
अच्छा तो अपना अतीत ही था
हे ईश्वर
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