कभी कुछ भूल जाते है कभी
कुछ याद आता है ये कैसा है भवर ये जिसमे हम खोये रहते है बड़ा नादान है ये दिल की
जो कहना नही माने मैंने रोका बहुत है फिर भी कहते गुस्ताख दिल है ये
है दिल के ये फशाने भी ग़ज़ब
के
जिनको पढना नही आता हम
क्यों उलझे से रहते है अपने ही ख्यालो में
हमारा गम भी इसमें है है
ढेरो खुसिया भी इसमें ही
मैंने रोका बहुत फिर भी
गुजर जाता है उस गली से ही
उफ्फ ये मुहब्बत के कीड़े
जो मानते ही नही है


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