- बहक गए जो कदम तो संभलना मुस्किल है
यही जान के कदमो को रोके बैठे है
कबतक रुकेंगे या रोकेंगे अपने कदमो को
यही जान के कदमो को रोके बैठे है - की अब इक बात तुमसे ऐ सखी कहना जरूरी है
मुहब्बत की गली में अब हमे चलना जरूरी है
की अब सोते हुए जगने की आदत हो गई हमको
की नंगे पैर अब कांटो पे चलना भी जरूरी है
नही मंदिर नही मस्जिद कोई पैगम्बर है मेरा
की तेरा नाम खुदा से पहले लेना अब जरूरी है
की तुझको राधिका कहने का मन हो रहा मेरा
प्रेम की मूरत है वो श्याम सुंदर बासुरी वाला
की अब विरहन के जैसे अब तडपना भी जरूरी है
की अब इक बात तुमसे ऐ सखी कहना जरूरी है
मुहब्बत की गली में अब हमे चलना जरूरी है - वो मिटटी से बनाइ सूरत थी मैंने
जाने क्या बना रहा था
वो अनजानी सी मुरत
जाने किसकी बन गयी
ना देखा था कभी अनजानी सखी
जैसे इस ह्रदय में प्यार का आगाज हो गया
क्या मिलूँगा कभी इस अनजाने चेहरे से मै
या कल्पना है कोई जिसका दीदार हो गया - आज याद आता है यारो वो गोलगप्पे का ठेला
वो गलियों का शोर वो गावों का मेला
बहुत याद आते है वो पल हमे
है हर पल सताते है वो पल हमे
कई दिन पहले महीनो पहले
इंतज़ार करना और करते रहना
इक इक पैसा उस गुल्लक में रखना
उस मेले की खातिर उस रेले की खातिर - वो कोयल की कूक सुन रहे थे हम
लेकिन आज उसमे सुर नही था मिलन का
जाने वो किन ख्यालो में खोई थी
या विरह का दर्द था अपने सजन का
रोज सुनते थे उसकी कूक हम
तो उसके एहसासों को भी जान लेते थे
आज कुछ बात तो जरूर है
जो हम भी समझ न पाए उसका मन
तान कुछ थी शब्द कुछ थे उसके
उसको सुनके मेरा मन भी हो रहा था दुखी
बात मै भी करना चाहता था उससे
क्योकि उस राह से गुजरा था मै भी कभी
- राजनीति की नीति कहे क्या
नेत्रहीन से ये हो गए
न सुनता है न दीखता है
आचारहीन से ये हो गये
नाही कोई मानवता बची
ना लाज बची न शर्म बची
अपनों को बेचने की
अब आदत इनकी हो गयी

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