- प्यार करने के लिए ना ही कुछ कहने की जरूरत होती है ,ना ही कुछ सुनने की जरूरत होती है ,ना ही कुछ भी खोने की ना ही कुछ पाने की ,उसके लिए एक अनछुआ प्यारा सा एहसास होना चाहिए ,जिसमे हम अपनी वास्तविक आँखों से नहीं अपितु अपने मन कि आँखों से देखने की शक्ति होनी चाहिए ,तो हम निशचल मन से जिसको भी चाहे प्यार कर सकते है ,वह कोई भी हो ,कही भी हो, चाहे हो वो हमारे पास हो ,चाहे वो हमसे दूर हो ,
चाहे इस जमी पर हो ,चाहे मीलो दूर उस आसमा पर……………… …… …… - ये जीवन क्या है ,क्यों हम इसे जिए जा रहे है ,शायद कोई तो कारण है जीने का ,कुछ अपने है कुछ पराये है ,तो कुछ सपने है ,कुछ हकीकत है ,लेकिन फिर भी जाने अनजाने में कोई न कोई रिश्ता तो है ही नही तो नाही ये काऱण होते नाही डोर होती जो हमारे मन के पतली पतली डोरियो से बंधी होती है ,और शायद इसीलिए इनको छोड़ना। इनसे दूर रहना बहुत ही मुस्किल होता है ,और शायद ये सोचना भी बहुत मुस्किल होता है कि हम अपनों को छोड़ने के भी
लेकिन क़भी कभी ये करना पड़ता है इसी का नाम तो त्याग है
इसीलिए लिए कहते है की त्याग का नाम ही जीवन है। . - एक अजीब सी परिस्थति ,अजीब सी कश्मकश , और ऐसा क्यों होता है ,क्यों कभी कभी हम खुद को नही समझ पाते है ,क्यों हमारे मन में अंतर्द्वंद चलता रहता है ,क्यों हम अपने ही मन से ,अपने ही विचारो से ,अपने पास के माहौल से जो कि बहुत ही स्वार्थी है ,……………. से लड़ता रहता है ,लोग कहते है की सबकुछ पास है फिर भी अधूरा पन लगता है ,हम खुद को अकेला महसूस करते है , क्या हम ,हमारे अपने और ये समाज इतना स्वार्थी हो गया की हम अपने आप को भूल गए ,अपने आचरणों को भूल गए ,अपनी संस्कृति भूल गए ,अपनी सभ्यता भूल गए ,……………
और इन सबको भूलने के साथ साथ शायद हम अपने आपको भूल गए। …….
शायद यही मेरे मन के अंतर्द्वंद का कारण है।
हे प्रभु मेरा मार्गदर्शन कीजिये। ………। - हमारी इल्तजा है उनसे की मान जाए मेरी मुहब्बत को
वरना सुनसान कर देंगे ये जहाँ और लोग भी तरसेंगे
मुहब्बत का नाम सुनने से
मान जा मेरी बात कर लेने दे ये इबादत
एक इकरार की मन्नत है मन मेरे जन्मो से
वरना खंडहर हो जायेगा ये शीशा ए दिल
चूर चूर हो जायेगा ये मन का ताज महल - गुजरी गलियो में मुहब्बत का नाम लेना गुनाह था
नजरे हर पल झुकी रहती थी समाज की दक़ियानूसी के तले
कभी गुजरते थे हिम्मत करके डरते डरते
कभी रुक जाते थे कदम चलते चलते - अध्यात्म हमारे जीवन का अभिन्न अंग है जो हमारे शरीर के प्रत्येक भाग में बसा हुआ है और इसमें खोकर अद्भुत आनंद की अनुभूति होती है ये हमारे ऋषि मुनियो के तेज का प्रतीक है प्राचीन काल से हम इस योग को करते चले आ रहे है लेकिन अब न जाने क्यों हमारी आज की पीढ़िया ये भूलती चली जा रही है अगर हम अपनी संस्कृति और सभ्यता को ऐसे ही भूलते रहे तो ये निश्चित है की ये विलुप्त हो जाएँगी और अगर ये विलुप्त हुई तो समझ लो की श्रिष्टि का अंत निश्चित है
मेरा विनम्र निवेदन है इसको जीवित रखो न सिर्फ अपने समाज में अपितु अपने तन में अपने मन में अपने जीवन में
जय श्री राधे कृष्णा - कितनी दूर चले ये कदम कभी चलते है कभी रुक जाते है
बाहो के दरमियाँ आके कुछ साये भी छिन जाते है
दिल ये ख्वाइसे तो तमाम करता है लेकिन
सपने मंन में भी बहुत है
लेकिन मेरा दिल है दिल कोई दरिया तो नहीं
इसीलिए लोग डूब जाने के दर से भाग जाते है
कैसे समझाए उस बेवफा मुहब्बत को
जिसके बिन गुजर दी हमने सारी जिंदगी
ताउम्र कैद में रहे उनकी जुल्फों में
फिर भी ये दिल तोड़ दिया तो हम क्या करे

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